जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार (बर्ताव) करे, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए यही नीति है । कपट का आचरण करने वाले के साथ कपटपूर्ण व्यवहार करे और अच्छा व्यवहार करने वाले के साथ साधु-भाव से ही व्यवहार करना चाहिए । महाभारत में इसी बात को इस श्लोक में बहुत अच्छे से बताया गया है।
यस्मिन् यथा वर्तते यो मनुष्यः तस्मिन् तथा वर्तितव्यं स धर्मः ।
मायाचारो मायया वर्तितव्यः साध्वाचारः साधुना प्रत्युपेयः ॥
(महाभारत/उद्योगपर्व १७८/५३)